Bharat Durdasha - Bhartendu Harishchandra

भारत दुर्दशा - भारतेंदु हरिश्चंद्र

रोवहु
सब मिलि के आवहु भारत भाई |
हा!हा! भारत दुर्दशा देखी जाई ||
सबके पाहिले जेहि ईश्वर धन बल दीनो |
सबके पाहिले जेहि सभ्य विधाता कीनो ||
सबके पाहिले जो रूप रंग रस भीनो|
सबके पाहिले विद्याफल जिन गहि लीनो ||
अब सबके पीछे सोई परत लखाई |
हा! हा! भारत दुर्दशा देखी जाई ||
जहं भए शाक्य हरिचंद नह्षु ययाती|
जहं राम युद्धिष्ठिर वासुदेव सर्यती ||
जहं भीम करण की छटा दिखाती |
तहं रही मूढ़ता कलह अविद्या राती ||
अब जहं देखहु तहं दुख ही दुःख दिखाई |
हा! हा! भारत दुर्दशा देखी जाई ||
लरी वैदिक जैन दुबाई पुस्तक सारी |
करी कलह बुलाई जवन सैन पुनि भारी ||
तिन नासी बुधि बल विद्या धन बहु वारी |
छाई अब आलस कुमति कलह अंधियारी ||
भए अंध पंगु सब दीन हीन बिलखाई |
हा! हा! भारत दुर्दशा देखी जाई ||
अंग्रेज़ राज सुख साज सजे सब भारी |
पै धन बिदेस चली जात इहै अति ख्वारी |
ताहू पै महँगी काल रोग विस्तारी |
दिन-दिन दुनो दुःख ईस देत हा हारी ||
सबके ऊपर टिक्क्स की आफत आई |
हा! हा! भारत दुर्दशा देखी जाई ||





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