आखिर क्यों मनाएं हम गणतंत्र दिवस?
                    - जयति गोयल (एक  विचार  )


पूरे देश में गणतंत्र दिवस मनाने की तैयारी शुरू हो गई है। गणतंत्र दिवस को राष्ट्रीय उत्सव भी कहा जाता है। स्कूलों और सरकारी संस्थानों में यह उत्सव मनाना अतिआवश्यक है। सवाल यह उठता है कि क्या कोई भी उत्सव थोपा जाना चाहिए?

कितने लोग इसे मन से मनाते होंगे? उत्सव क्या बाध्यता से मनाए जाने चाहिए? ऐसा उत्सव जिसे बाध्य करके मनवाया जाता हो उसे उत्सव कहना क्या उचित होगा।

इसे राष्ट्रीय उत्सव कहना राष्ट्र और उत्सव दोनों शब्दों के साथ मजाक करना है। इसे राजकीय उत्सव तो कहा जा सकता है, परंतु राष्ट्रीय उत्सव कभी नहीं। क्या मतलब है उस राष्ट्रीय उत्सव का, जिसको राष्ट्र के सभी नागरिक ही अपने मन से नहीं मनाते हों।

हम सभी को इस पर भी अवश्य विचार करना चाहिए कि आखिर वह कौन-सा कारण है कि देश के नागरिकों को इसका मतलब समझ में नहीं आता है। और अगर मतलब समझ में आता है और फिर भी स्वयं से मनाना नहीं चाहते हैं। तो ये तो और भी ज्यादा चिंता का विषय है। 



क्या इसे हम सरकार कि विफलता नहीं कहेंगे कि साठ साल बाद भी उसका राष्ट्रीय उत्सव देश के आम आदमी तक नहीं पहुंच पाया है। आम आदमी तो इसके पीछे के इतिहास को समझ ही नहीं सका, तो वह इसे हर्षोउल्लास से कैसे मना सकता है। 

वास्तव में आजादी मिलने के बाद अपने देश में एक नई संस्कृति और नया राष्ट्र बनाने कि कोशिश शुरू की गई थी। इसलिए इस राष्ट्र से जुड़ी सारी प्राचीन चीजों को नष्ट करके नई संस्कृति को शुरू करने का प्रयास किया गया। नए नेताओं ने व महापुरुषों ने नया इतिहास रचाने कि कोशिश की। 

अगर पुरानी अस्मिता को नष्ट करके हमारे देश की और राष्ट्र की भलाई होती तो लोग आज परेशान न होते बल्कि आज हम देखते हैं कि पुराने जीवन मूल्यों और परंपराओं कि उपेक्षा करने से समस्याए बड़ी ही हैं कम नहीं हुई। 

गणतंत्र दिवस को यदि संविधान स्थापना समारोह के रूप में मनाया जाए तो फिर भी सही है। परंतु इसे राष्ट्रीय उत्सव कहना उचित नहीं है। जो उत्सव देश के आम आदमी को उत्साहित नहीं करता उसे राष्ट्रीय उत्सव कैसे कहें। 

गणतंत्र दिवस को मनाने में जनता का बहुत सारा पैसा लगता है, जो देश के विकास कार्यों के लिए बाधा बन जाता है तो क्या इसे मनाना उचित है?

            
                                                  _______________जयति गोयल




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