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हे पन्थी पथ की चिन्ता क्या?
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हे पन्थी पथ की चिन्ता क्या?
हे पन्थी पथ की चिन्ता क्या ?
तेरी चाह है सागरमथ भूधर,
उद्देश्य अमर पर पथ दुश्कर
कपाल कालिक तू धारण कर
बढ़ता चल फिर प्रशस्ति पथ पर
जो ध्येय निरन्तर हो सम्मुख
फिर अघन अनिल का कोइ हो रुख
कर तू साहस, मत डर निर्झर
है शक्त समर्थ तू बढ़ता चल
जो राह शिला अवरुद्ध करे
तू रक्त बहा और राह बना
पथ को शोणित से रन्जित कर
हर कन्टक को तू पुष्प बना
नश्वर काया की चिन्ता क्या?
हे पन्थी पथ की चिन्ता क्या ?
है मृत्यु सत्य माना पाति
पर जन्म कदाचित महासत्य
तुझे निपट अकेले चलना है
हे नर मत डर तू भेद लक्ष्य
इस पथ पर राही चलने में
साथी की आशा क्यों निर्बल
भर दम्भ कि तू है अजर अमर
तेरा ध्येय तुझे देगा सम्बल
पथ भ्रमित न हो लम्बा पथ है
हर मोड खड़ा दावानल है
चरितार्थ तू कर तुझमे बल है
है दीर्घ वही जो हासिल है
बन्धक मत बन मोह पाशों का
ये मोह बलात रोकें प्रतिपल
है द्वन्द्व समर में मगर ना रुक
जो नेत्र तेरे हो जायें सजल
बहते अश्रु की चिन्ता क्या
हे पन्थी पथ की चिन्ता क्या ?
तेरी चाह है सागरमथ भूधर,
उद्देश्य अमर पर पथ दुश्कर
कपाल कालिक तू धारण कर
बढ़ता चल फिर प्रशस्ति पथ पर
जो ध्येय निरन्तर हो सम्मुख
फिर अघन अनिल का कोइ हो रुख
कर तू साहस, मत डर निर्झर
है शक्त समर्थ तू बढ़ता चल
जो राह शिला अवरुद्ध करे
तू रक्त बहा और राह बना
पथ को शोणित से रन्जित कर
हर कन्टक को तू पुष्प बना
नश्वर काया की चिन्ता क्या?
हे पन्थी पथ की चिन्ता क्या ?
है मृत्यु सत्य माना पाति
पर जन्म कदाचित महासत्य
तुझे निपट अकेले चलना है
हे नर मत डर तू भेद लक्ष्य
इस पथ पर राही चलने में
साथी की आशा क्यों निर्बल
भर दम्भ कि तू है अजर अमर
तेरा ध्येय तुझे देगा सम्बल
पथ भ्रमित न हो लम्बा पथ है
हर मोड खड़ा दावानल है
चरितार्थ तू कर तुझमे बल है
है दीर्घ वही जो हासिल है
बन्धक मत बन मोह पाशों का
ये मोह बलात रोकें प्रतिपल
है द्वन्द्व समर में मगर ना रुक
जो नेत्र तेरे हो जायें सजल
बहते अश्रु की चिन्ता क्या
हे पन्थी पथ की चिन्ता क्या ?
~~ अमित कपूर ~~
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1 Comments
atyant sundar amit ji,
ReplyDeletebahut hi khoob.
aap ko bahut bahut badhayiyan aur shubh kaamnaen