यादों भरी वो लाइब्ररी..
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आज दिखी वो लाइब्ररी जहा हम तुम जाया करते थे,
ज़िन्दगी के पन्नो में बातें उखेरा करते थे |
आज उन यादो से जुड़ने का एक और द्वार मिल गया ,
आज उन यादो से जुड़ने का एक और द्वार मिल गया ,
और मिला वो आधा प्यार, जो कभी यादों में था दब गया |
किताबों से भरी हर वो तख़्त निहारा करती थी,
जब तुम उस कोने से मुझे पुकारा करती थी |
सन्नाटे मे हसने का तुम्हारा,वो एहसास मुझे फिर मिल गया,
हर उस नज़ारे का मुझे,फिर से नज़ारा मिल गया |
याद आई वो मेज़ जहा हम तुम संग बैठा करते थे,
मिलती थी हमारी नज़रे ,घंटो बातें किया करते थे |
वहा जाना तो बस, जाना पहचाना सा एक बहाना था,
वक्त की खाई मे भी,तुमसे मिलने जो आना था |
रोज़ नए अध्याय हम अपने किस्से में जोड़ा करते थे,
तुम कहती थी, मैं सुनता था और ये दिन बीता करते थे |
किताबों के पन्नो सा,जहां हम एक दूजे को पढ़ा करते थे ,
याद आ गयी वो लाइब्ररी जहा हम तुम जया करते थे।
~~~ आदर्श तिवारी ~~~
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