Bhikari - Mamta Sharma


 भिखारी
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हाथ उठा निरीह सी  आँखें ,पर अन्दर हैं कोमल पांखें
खोल पंख ये उड़ना चाहें , लेकिन पंख बिखर हैं जाते
 
हंसी भी है पर खोई - खोई ,सांसें भी पर सोई - सोई
कहाँ गया वह बचपन भोला ,कैसे मिले स्कूल का झोला .
 
सीखे सब गुर चाल ढिटाई, कौन है मीठा कौन मिठाई
जब देखे वे बहन व् भाई ,आँखें मेरी यूँ भर आईं
 
क्यों ये जीवन जीने आये ,क्यों इच्छाएं मारते जाएँ
क्या अपराध हुआ है इनसे , सुख सारे क्यों छीने इनसे
 
कैसे दूर करूँ ये सब दुःख ,कैसे हांसिल हों इनको सुख
 या रब दिखला कोई आशा ,मेरे मन कि ये अभिलाषा
 
रख अपने ही पास ये सब कुछ ,भेज न पृथ्वी पर सब ये दुःख
 तू ही खेल वहीँ ये खेला,ले जा दुखों का अब ये रेला
 
वर्ना धरती फट जायेगी तब भी समझ तुझे आएगी
काश तू इसको समझ भी पाता, दुःख का अर्थ तुझे भी आता

- ममता शर्मा 

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