Kaash wo taara mil Jata - Rishish Dubey "Raahi"

काश वो तारा मिल जाता
_______________________

एक किनारा ,एक लहर 
एक ही माझी मिल जाता
हाथ बढाया था मैंने
ऐ काश वो तारा मिल जाता |

दूर नहीं है वो मुझसे
मुझको अब भी दिखता है
पा लेता उसको मैं शायद
कोई बढ़ावा मिल जाता
हाथ बढाया था मैंने
ऐ काश वो तारा मिल जाता |

था खाली ही जब घर मेरा
खाली खाली हर मंजिल
एक नगर , और एक डगर
कैसे 'राही' थम जाता
हाथ बढाया था मैंने
ऐ काश वो तारा मिल जाता |

हूँ आवारा मैं तो क्या
वो तारा भी आवारा है
जिस शब्-ए-महफ़िल में मैं बैठूं
मुझपे हंसने आ जाता
हाथ बढाया था मैंने
ऐ काश वो तारा मिल जाता |

बचपन में थी बात सुनी
वो तारा हर शब् गिरता है
मिल जाता जो साथ तेरा
तेरे दामन में गिर जाता
वो तारा मुझको मिल जाता
तेरे दामन में गिर जाता
वो तारा मुझको मिल जाता

हाथ बढाया था मैंने
ऐ काश वो तारा मिल जाता ||

 ~~ ऋषीश   दुबे ~~
_______________________

Post a Comment

0 Comments