मुझको इतनी हिम्मत दिलवा दे – १ + २
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कोलाहल से ऊपर उठती
हो
ऐसी बुलंद आवाज़
दिलवा दे|
उल्टी धार में भी
मुझको
पतवार चलाना सिखला
दे|
रेंग रहा हूँ पृथ्वी
पर कब से
मुक्त आकाश की पतंग
बनवा दे|
मुझको इतनी हिम्मत
दिलवा दे|
आलोचनाओं के
झंझावातों में भी
सिर ऊंचा रखना सिखला
दे|
मुश्किलों के अंधड़
में भी
वक्ष खोल चलना सिखला
दे|
अत्याचारों को सहने
की
कायरता से मुक्ति
दिलवा दे|
मुझको इतनी हिम्मत
दिलवा दे|
सच को सच कह पाऊँ जो
ऐसी अद्भुत शक्ति
दिलवा दे|
रिपु को गले लगा लूँ
जो
ऐसी चमत्कारिक
युक्ति बतला दे|
तुझसे विश्वास न हटे
कभी
ऐसी अविराम भक्ति
दिलवा दे|
मुझको इतनी हिम्मत
दिलवा दे|
दुर्गम पथरीली राहों
पर निर्भय
आगे बढ़ने के गुर
बतला दे|
प्यार की खातिर ग़म
सहने का
पर्वतसम सम्बल दिलवा
दे|
उगते सूर्य की प्रथम
रश्मि का
एक अग्रणी अश्वारोही
बनवा दे|
मुझको इतनी हिम्मत
दिलवा दे|
दुखियारों के दुख में हमदम हो
आँसू दो बहाना सिखला
दे|
कृत्रिमता में जकड़े
जग में
पुनः बाल्यसम किलक
बँटवा दे|
अपनी कमियों पर हँस
कर
अपनाने का रज सिखला
दे|
मुझको इतनी हिम्मत
दिलवा दे|
~~ अजय तिवारी ~~
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