Videsh - Mamta Sharma

बच्चे जब काम करने विदेश चले जाते हैं उनके माँ -बाबा पर क्या गुजरती है ........इसी के ऊपर है ये मेरी कविता। कुछ समय तो अपने घर वालों की याद आती है फिर सब कुछ सामान्य।
मगर माँ - पिता वे अपना मोह नहीं त्याग पाते हैं, और माँ की दशा तो सिर्फ महसूस करने योग्य ही होती है .......
 
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विदेश 
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क्या गुजरती  उन पे है ,तुम छोड़ जाते हो जब अकेला

टीस सी उठती है मन में ,ज्यों अकेला हो ये मेला

बूढी आँखें सुख- व् -दुःख में ,गीली हो -हो सूख गईं

पुत्र  प्रेम की वो डोर जपते -जपते चूर हुई
 
 
 

कोई आता अपने मन के भाव भर वो थैलियों में

भेजते हैं दूर देश प्रेम मन का थैलियों में

अश्रु पूर्ण आँखों से चुन - चुन कर तेरी रुचियाँ

माँ भरती मुट्ठी में भेजती तुझको है खुशियाँ
 
 
 

फ़ोन  पर सुन तेरी बातें ,चाहती छिपाना भाव

शक ना हो तुझे कोई झेल जाती है वो घाव

यूँ ही लड़ झगड़ के वो काटते हैं अपनी शाम

क्यों हमने सींचे बाग़ क्यों हमने रोपे आम
 
 
 

बेटा तू छोड़ - छाड़ आ जा अब यहाँ ही

हमें क्यों बुला है रहा घर अपना यहाँ ही

पर   बेटा गया जो है आएगा कहाँ  वापिस

वह तो सुख की दुनियाँ,दुःख से हो क्या हासिल
 
 
 

अपने बच्चे अपनी बीवी ,माँ  की जगह टीवी

सुख -सुविधा धन - माया ,सब की तो यहीं वीथी
 
 
पलक पांवड़े बिछाये ,दिन बीते  रात जाएँ 
 
 
बेटा - बहू  गए  जो हैं  लौट के शायद वो आयें  ................
 
~~ ममता शर्मा ~~ 
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