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अंतिम वृक्ष
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सहसा बोला वह एकांत,
सौंदर्यहीन तथा क्लेश-क्लांत,
वह शक्तिहीन, वह मानहीन,
वह दुखी दुखी अति दीन-हीन,
प्रकृति सुंदरी का वह श्रृंगार,
मानव-कर्मों से दुखी अपार.
हाँ तरु कहो या उसे पेड़,
मानव जीवन की वह है मेड़,
पर आज स्वयं यह रोता है,
जब मानव जन सोता है,
यह है धरती का अंतिम वृक्ष,
है मानवता को प्रश्न यक्ष,
क्यों कट गए इसके सब साथी,
लाशों पर चलते बाराती,
पर आज मशीने आई हैं,
संहार साथ वो लायी हैं,
बन गया तथापि क्रूर दानव,
कल तक था जो कभी श्रेष्ठ मानव..
देवेन्द्र शर्मा
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