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एक अजनबी : ~गौरव मणि खनाल~
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आज मिला हार का एक और इनाम है,
सपना टुटा, मन रूठा,
जग हुआ वीरान है,
अचानक झुके हुए कंधो पर,एक स्पर्श हुआ,
मुड कर देखा तो, एक अजनबी का दीदार हुआ,
उसके उज्जवल चेहरे पर मुस्कान का साथ था,
उसकी मुस्कान कुछ कह रही थी,
मेरे हताशा भरे मन को हौसला दे रही थी,
उसके चेहरे की उज्जवलता ,
उम्मीद नयी जगा रही थी,
उस अजनबी का साथ दिल को भा रहा था,
अजनबी से रिश्ता नया बना रहा था,
फिर कुछ देर ख़ामोशी रही,
एक दुसरे को पहचाने ने की कोशिश रही,
अचानक अजनबी ने चुप्पी तोड़ी,
क्यों उदास को प्यारे, क्यों बैठे हो जोश को हारे,
क्या हुआ जो आज हारे!!
कल सवेरा फिर आएगा ,नयी रौशनी लायेगा,
शायद आज कुछ सिखने का दिन है,
हार से जीवन रथ को धकेलने का दिन है,
एक नयी रहा बनाने का दिन है ,
हार से जीत की और जाने का दिन है,
हार से हार ना मनो,
हार को जीत का सहभागी मनो,
जीत की परेणा का साथ ना छोड़, उम्मीद ना छोड़,
जीत मिलेगी संशय ना कर,
आपने जोश को ठंडा ना कर,
तुझे कौन हरा सकता है, तुझे कौन झुका सकता है,
तू तो परमशक्ति परमत्मा की संतान है,
शिक्तियो का भंडार उर्जा की खान है,
तू प्रेम की प्रकास्टा और इस संसार की जान है,
तू संसार की बिना नही, संसार तेरे बिना वीरान है,
अजनबी की बातो ने मानो सारा दुःख खीच लिया,
शांत हुए मन मै, जीत का बीज रोप दिया,
दिल फिर से खिल उठा, मुख फिर मुस्कुरा उठा,
अजनबी जाने को तयार है,
मेरे मन मै अब बस एक सवाल है,
अजनबी कौन है कहा से आया है,
अजनबी मेरा मन जान गया,
और जाते जाते बस इतना बोल गया,
मै अजनबी नहीं तेरा पिता हु,
मै ही परमशक्ति परमत्मा हु,
तू मुझे भूल गया तो क्या हुआ,
मै सदा ही तेरे के साथ हु,
अब कभी हारे तो दुःख ना करना,
आपने जीवन को वीरान ना करना,
कोई मुस्किल आये, शांत हो कर मुझे याद करना,
मै आऊंगा और तुझे रह दिखाऊंगा!!!
~गौरव मणि खनाल~
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