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मेरी माँ: गौरव मणि खनाल
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कहने को बहुत है आपने,
पर तेरे जैसा कोई नही यहाँ,
प्यार तो मुझसे सब करते है,
पर तेरे जैसा दुलार नही यहाँ,
मेरी माँ..
है सब कुछ इस शहर मे,
पर बिन तेरे लगता है सब सुना यहाँ,
घर तो बसा लिया मैंने,
पर तेरे बिन सब अधुरा यहाँ,
मेरी माँ..
हार तरह स्वाद का खाना मिलता शहर मे,
पर तेरे हाथो से बनी रोटी सा स्वाद नही यहाँ,सोने के लिए मखमली बिस्तर है,
पर तेरी थाप्लियो के बिना नीद नही यहाँ,
मेरी माँ..
हौसला देने वाले बहुत है,
पर सच मे आंसू पोछे ऐसा कोई नही यहाँ,
चेहरे के भावों को सब पढ़ते,
पर तेरी तरह मेरे मन को पढ़े ऐसा कोई नही यहाँ,
मेरी माँ..
आराम करने के लिए सब सुविधा है,
पर तेरे अंचल की ठंडक नही यहाँ,
दोस्तों की गपसप है,
पर तेरी कहानियो वाली बात नही यहाँ,
मेरी माँ..
सब ख़ुशी चाहते है,
पर कोई ख़ुशी नहीं देता यहाँ,
खुदगर्जो के शहर मे,
तेरे बिन बहुत अकेला हु मै यहाँ,
मेरी माँ..
क्यों दूर कर दिया किस्मत ने मुझे तुझसे,
तेरे बिन बहुत तनहा हु मै यहाँ,
आती है हार पल याद तेरी,
तेरे बिन दिल नहीं लगता अब मेरा यहाँ,
मेरी माँ..
बहुत आराम की जिंदगी है इस बड़े शहर मै,
पर सच ये है रोता हु रात को अकेले मै यहाँ,
तेरी यादो का सहारे कट रही है जिंदगी है,
वरना नहीं देता मेरा मन भी मेरा साथ यहाँ,
मेरी माँ..
तुझे देखने को दिल मेरा धड़कता है,
तुझसे लिपटने को मन मेरा तड़पता यहाँ,
तेरे कोमल हाथो का स्पर्श खोजते है सूखे हुए गाल मेरे,
तेरी गोद मै सर रख कर सोने को तरसता हु मै यहाँ,
मेरी माँ..
पता है मुझे रोती है तू भी अकेले मै,
जैसे सिसकता है दिल मेरा अकेले मै यहाँ,
जनता हु तसरती है तू मिलने को मुझे,
जैसे तडपता हु मै मिलने को तुझे मै यहाँ,
मेरी माँ..
सोचता हु कैसे कर दी मैंने इतनी बड़ी भूल,
कुछ सुखो के लिए चला आया इतनी दूर,
अब जब अकेला और तनहा हु यहाँ,
समझा मै जिंदगी की बात यहाँ,
सुख वही है जहा है मेरी माँ,
~~ गौरव मणि खनाल ~~
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