Kahan Hai Rab - Ankita Jain

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कहाँ है रब - अंकिता जैन
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वो तुझमे ही समाया है, गर पहचान पाओ तो,
क्यूँ दर-दर यूँ भटकता है, इक बार तो देखले खुदको !
हजारों नाम देकर अब कर दिया विभाजन जिस रब का,
वो शिव है या है खिवैया तेरे भटके हुए अंतर्मन का !!
ना लड़ लेकर नाम अब उसका, जिसको पहचान भी ना पाया,
देखले इक बार सूरत फिर से अपनी ये, गर मिल जाये कोई दर्पण तो !
दावा है गर मन हुआ सच्चा तो नज़रें मिल ना पाएंगी,
बहाया है रक्त बेवज़ह ये सच पहचान जाएँगी !!
दुआ है मिट जाये सब पहले ही उसके हम सब समझ जाएँ,
अब भी बिगड़ा नहीं है कुछ, करदो ख़त्म झगड़े को !
तेरा शिव है किसी का अल्लाह फर्क इतना सा गर जानो,
मगर उसके लिए सब उसके अपने हैं, बात ये मान जाओ तो !!
रोता है वो इस बात पर आंसू बहाता है,
दर्द सबसे ज्यादा होता है जब कोई अपना मार दे किसी अपने को !
हजारों कर लिए व्रत उपवास जिससे मिलने की चाहत में ,
वो तुझमे ही समाया है , गर पहचान पाओ तो !!

~~~ अंकिता जैन ~~~

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