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त्रासदी
- अंकेश जैन
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यह कविता उस त्रासदी को दर्शाती है जिसे जापान जैसे एक अत्यंत विकशित देश को झकझोर कर रख दिया|
यह दर्शाती है की मानव जाती आज कितनी ही बुलंदियों पे हो ,परन्तु आज भी वो श्रृष्टि के असीम ताकत के सामने विवश है | हम उसे रोक तो ना सके न ही सकते है ,पर एकजुट होकर उसके दर्द को कम किया जा सकता है | इन विध्वंशकारी त्रासदियों को रोकने का एकमात्र उपाय अपनी श्रृष्टि के नियमो का पालन करना एवं उसमे संतुलन लाने हेतु ग्रीन हाउस गसेस के उत्सर्जन को कम करना होगा | यह कोई एक कारन इसकी जिम्मेदार नहीं है , पर यह उनमे से एक बड़े कारणों में से है |
_ आदर्श
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क्षण भर के कम्पन ने फिर से
एक नयी त्रासदी ढा दी
कितनी सूक्ष्म असहाय जिन्दगी
जल तरंग ने पल में बहा दी
असंभव घटनाओ का
यह कैसा क्रम है छाया
नाभिकीय विस्फोटो से
विकिरण निकल बाहर है आया
ढूढ़ रहे है दूर दूर से
आये नयन मनुज के तन को
अपने स्वप्नो के मलवे में
छिपे हुए मानव के मन को
स्वयं झूझती सीमाओ से
आज अर्ध्सुप्त सी काया
सकल विश्व हुआ एक है
यह संकट मानव पर आया |
~~ अंकेश जैन ~~
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1 Comments
kisi ne sahi kaha hai: bhagwan dete ho to bhi hajaro hatho se aur jab lete hai to bhi hajaro hatho se..
ReplyDeleteexcellent work bro.....