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आदमी ने नाप डाली
:- शंकथा प्रसाद द्विवेदी "विनोदी "
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आदमी ने नाप डाली चाँद तक की दूरियां ,
आदमी तक पहुँच पाना पर अभी तक शेष है |
सागरों के पाँव डाली आज हमने बेड़ियाँ ,
आंसुओं की थाप पाना पर अह्बी तक शेष है |
यन्त्र स्वर में दब गयी हैं धड़कने इंसान की ,
अब न कोई राह आती अडचने ईमान की |
हम प्रगति के नाम पर अब बढ़ रहे कुछ इस तरह,
चकित होकर देखती हैं हरकतें शैतान की |
हम बढ़ने जा रहे आदिशक्ति की चिंगारियां,
धुंआ मन ka दूर करना पर अभी तक शेष है |
आदमी ने नाप डाली चाँद तक की दूरियाँ ,
आदमी तक पहुँच पाना पर अभी तक शेष है |
भावनाओं के लिए यूँ तो बनाये ताज तक ,
दर्द लेकिन झोपड़ी का हम न समझे आज तक |
यीशु गौतम गंध सब दे गए सन्देश अपने,
पर कहा अब गूंजती उनकी कही आवाज तक |
विश्व में बजने लगी जनतंत्र की शेह्नाइयां ,
भूक को चन्दन लगाना पर अभी तक शेष है |
आदमी ने नाप डाली चाँद तक की दूरियां ,
आदमी तक पहुँच पाना पर अभी तक शेष है ||
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