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यथार्थ
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कल मैंने चांदनी रात को येथार्थ में देखा..
उसकी प्रकाश को धरातल पर देखा...
इस छनिक प्रकाश में जो आवेग था...
उससे कई जयादा मेरे विचारो का वेग था..
उस प्रकाश का वास्तविक श्रोत तो कोई और था...
पर मेरे विचोरों का श्रोत मै खुद था ...
इस प्रकाश का अंत तो नजदीक था ...
पर मेरे विचारो का धरता ही अतीत था...
फिर एक नई रात का आगमन हुआ ...
पर यह निरीह प्रकाशविहीन हुआ..
एक और इन्तजार का आगाज़ हुआ..
फिर चांदनी रात का आभास हुआ...
ये ही जीवन का यथार्थ है ...
हर अन्धकार के पश्चात प्रकाश हे प्रकाश है...
~~ विकास चन्द्र पाण्डेय ~~
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