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आओ ना मितवा - हरि प्रसाद शर्मा
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आओ ना मितवा अभी मन है प्यासा,
रुको जब तक हलचल है, जीवित है आशा |
यमुना का तट था औ कदम्बो की डाली,
बिन राधा थे बैठे जहा श्याम खाली,
बरनिया के कुंजो मे झूल थे हम तुम,
उन सखियों से छिपकर मिले भी थे आली |
तब पूनम की रातो में संग-संग विचरना,
वो फूलो की सेजों पे खुद में सिमटना,
वो कंपते से अधरों पे प्यार की वर्षा,
याद है वो दोनों का एक होकर मिलना |
याद है वो स्वप्निल सी भीगी-भीगी राते ,
तुमने लिखे ख़त और मीठी-मीठी सी बाते,
जाओ ना मितवा अभी मौसम है प्यारा,
अकेले खेल में झेलूँगा, रोज शह और माते |
आओ ना मितवा अभी मन है प्यासा,
रुको जब तक हलचल है,जीवित है आशा ||
~~ हरि प्रसाद शर्मा ~~
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