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चाहत सुकून की
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हम बेठे थे उस कश्ती में,
जिस कश्ती में पतवार ना थी !
देखी मंजिल उस खंज़र में,
जिस खंज़र में भी धार ना थी !!
सपने तो बहुत सजाने थे,
पर पलकों ने नामंज़ूर किया !
ये उन लम्हों के मंसूबे थे,
कि ख़्वाबों को ताला लगा दिया !!
चाबी टांगी उस खूँटी पर,
जो खूँटी बिन दीवार क़ी थी !
पाने भी चढ़े उस सीढ़ी पर,
जिस सीढ़ी में कोई लकार ना थी !!
माना अब तक कुछ मिला नहीं,
पर संतुष्टि ऐसा शब्द मिला !
जो खुदमे ही सम्पूर्ण नहीं,
जिसने चाहा उसे न कभी आराम मिला !
हमने भी पाने वो राह चुनी,
जहाँ हर कदम पे दूरी बढ़ती थी !
मंजिल बस होती थी दुगनी,
पर हर साँस पे उम्र तो घटती थी !!
अब फिर पाना चाहूँ वो जीवन,
जहाँ थोक में परियाँ मिलती थीं !
कागज़ के फूल भले ही थे,
पर खुशबु असल महकती थी !
पर अब हम बैठ चुके उस कश्ती पर,
जिस कश्ती में पतवार ना थी !
देखी मंजिल उस खंज़र में,
जिस खंज़र में भी धार ना थी !!
~~ अंकिता जैन~~
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2 Comments
bahut badiyaan
ReplyDeletebahut khuuub
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