______________________
डरता हु मैं
______________________
कहता नहीं किसी से,
डरता हु
मैं
आपने आप से,
नहीं बोलता हु
मैं
आपने ही दिल से,
डरता हु मैं इस दिल की चाहत से,
मन तो बहुत करता है बनाऊ कोई दोस्त,
पर डरता हु
मैं
दोस्त की बेवफाई से,
नही बोलता हु
मैं
किसी अनजान से,
डरता हु किसी को आपना बनाने से,
प्यार नही करता किसी से,
डरता हु दिल टूटने के दर्द से,
नही जानता विश्वास का मतलब,
डरता हु इस दगाबाज़ ज़माने के चालो से,
नही चाहता मुस्कुराना है,
डरता हु हँसी के पीछे छुपे गम से,
नही जानता जीतना मै,
डरता हु हार के लम्बे हाथो से,
खुल के जीना भूल गया है,
डरता हु काल की मार से,
भूल गया जिंदगी के मायने मै,
डरता हु आने वाले कल के भार से,
भावहीन है चेहरा मेरा,
डरता हु कोई पढ़ ना ले डर को मेरे,
शब्द नही है मेरे मन के कोष मे,
डरता हु मन की वेदना किसी को कहने से,
डरता हु मै हार पल के बदलाव से,
जीवन परिवर्तन के सिधांत से.....
~ गौरव मणि खनाल~
______________________
0 Comments