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कभी समझा ही नहीं...
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प्यार को मेरे तुने कभी समझा ही नहीं,
निगाहों को मेरे तुमने पढ़ा ही नही,
मेरे दिल की धडकन है तू,
पर इस दिल की आवज़ को तुमने कभी सुना ही नही,
न कह सका मुझे प्यार है तुमसे,
और मेरी खामोशी को तुमने समझा ही नही,
मैंने तो तुमको आपना रब माना,
पर मेरे ऐतबार को तुमने कभी समझा ही नहीं,
तुम समझे मे छोड़ चला तुम्हारा साथ,
मुड़कर एक बार भी पीछे देखा ही नहीं,
आज भी लिए निगाहों मे प्यार के मोती खड़ा हु मै उसी मोड़ पर,
पर मेरे इंतजार को तुमने कभी समझा ही नहीं,
मेरी हर साँस मे तुम्हारे लिए दुआ है,
मेरी इबादत को तुमने कभी माना ही नहीं,
चल दिए रूठ कर हमसे तुम इस कदर,
याद फिर हमको कभी किया ही नहीं,
सपने मे भी नही देखा हमने किसी और का चेहरा,
तड़प को मेरे कभी तुमने समझा ही नहीं,
प्यार को मेरे तुमने कभी समझा ही नहीं...
~गौरव मणि खनाल~
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