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शब्दों की परिभाषा - विकाश चन्द्र पाण्डेय
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कुछ रिश्तो की परिभाषा अलग सी होती हैं ,
अधुरें ख्वाबो की अधूरी कहानी होती है .
चाहता हु इन्हें शब्दों में पिरोना ,
पर कुछ यादें रोकती है.
इस परिभाषा की भी एक अलग ही दिशा है ,
इन अनकही बातों की भी एक वजह है .
चाहता हूँ इन यादों को भुलाना,
पर कुछ बातें रोकती है.
सभी ख्वाब कभी पुरें नहीं होते ,
परछाइयों के कभी चेहरे नहीं होते.
चाहता हु इन खाव्बों को पूरा करना,
पर कुछ रातें रोकती है.
शायद इस परिभाषा में कुछ अधूरापन हो,
या फिर मेरी अशिमित सोच का प्रवाह हो.
पर वो बातें आज भी गूंजती है,
वो यादें आज भी याद आती है.
वो सपने आज भी जगातें है ,
वो अनकही बातें आज भी मेरी गलतियां याद दिलाती है.
चाहता हु इन्हें आज भी सुधारना,
पर अब उसकी खुशियाँ मुझे रोकती है.
उसकी दुनिया मुझे रोकती है....
'' विकास चन्द्र पाण्डेय ''
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1 Comments
beautiful line.....seedhi sacchi aur dil ko chune wali....gr8
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