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आधुनिक संस्कार
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न जाने क्यों मेरी आखें नम थी ।
न जाने किस दर्द में गुम थी ।
किसी भ्रम में या किसी स्वपन में गुम थी।
देख रही थी शायद आधुनिकता को ,
या फिर ढूढ़ रही थी पुराने संस्कारो को
न जाने किस चीज़ की उसको तलाश थी ।
आज अचानक देखे गए दृश्यों से दंग थी ।
या हो रहे अत्याचार से तंग थी ।
कल तक जिसने हाथ पकड़ कर चलना सिखाया था
अपने मुह का निवाला भी तुमको खिलाया था
आज उसी के लिए अपने घर पर जगह नहीं ,
आज उसकी कोई कीमत या कदर नहीं,
क्यों छोड़ देते है अकेला उनको ,
जिन्होंने स्वपन देखने सिखाये हो तुमको ।
राहो मे चलना सिखाया हो तुमको ।।
कुसुम
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