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मिटने वाली रात नहीं ........
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दीपक की है क्या बिसात , सूरज के वश की बात नहीं,
चलते - चलते थके सूर्य , पर मिटने वाली रात नहीं.
चारों ओर निशा का शाशन,
सूरज भी निश्तेज हो गया.
कल तक जो पहरा देता था,
आज वही चुपचाप सो गया.
सूरज भी दे दे उजियारा , ऐसे अब हालत नहीं,
चलते-चलते ..............................
इन कजरारी काली रातों में,
चन्द्र-किरण भी लोप हो गई.
भोली - भाली गौर वर्ण थी,
वह रजनी भी ब्लैक हो गई.
सब सुनते हैं, सब सहते, करता कोई आघात नहीं,
चलते-चलते.............................
सूरज तो बस एक चना है,
तम का शासन बहुत घना है.
किरण - पुंज भी नजर बंद है,
आँख खोलना सख्त मना है.
किरण पुंज को मुक्त करा दे, है कोई नभ जात नहीं,
चलते-चलते ..........................
हर दिन सूरज आये जाये,
पहरा चंदा हर रात लगाये.
तम का मुंह काला करने को,
हर शाम दिवाली दिया जलाये.
तम भी नहीं किसी से कम है, खायेगा वह मात नही,
चलते-चलते .............................
ढह सकता है कहर तिमिर का,
नर तन यदि मानव बन जाये.
हो सकता है भोर सुनहरा,
मन का दीपक यदि जल जाये.
तम के मन में दिया जले, तब होने वाली रात नहीं,
चलते-चलते ............................
~~आनन्द विश्वास~~
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1 Comments
मेरे नाम की सही Spelling,
ReplyDeleteAnand Vishvas है
ना कि Anand Vishwas
कृपया सुधार लें।
धन्यवाद
Anand Vishvas
Anand Vishvas anandvishvas@gmail.com anandvishvas.blogspot.com