Tere nishan - Abhishek kumar Gupta

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तेरे निशाँ

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फिर से जिंदगी के उस मुकाम पर खड़ा हूँ |
सवाल तो कई है लेकिन जवाबो का पता नहीं |
वफ़ा तो याद, पर ना मालूम, कि क्या खता रही |
जो पता तूने दिया खुद, उस पर ही तेरा पता नहीं ||

इतनी दूर यूँ चला आया मैं, तेरे इश्क में थी ऐसी इबादत,

आँखों में  बेताबी थी और दिल में सिर्फ मोहब्बत |
तू ना थी साथ और पथ पर आई बहुत सी रुकावट ,
गम ना था उस दर्द का, केवल एक है अब शिकायत,
मजिल पर तो मैं पहुँच गया लेकिन तेरा कोई निशाँ नहीं ,
जो पता तूने दिया खुद,  उस पर ही  तेरा पता नहीं ||

नभ पर सप्तऋषि सा, तुम्हारे जीवन का संकेत तो दिखता है,

उस दिशा में देखू तो ना ध्रुव, ना  कोई अवशेष झलकता है  |
तुम आये थे तो  इस ओर, तेरे पैरो के निशान मैं जानता हूँ |
तुम रोये थे, मिटटी के मिली तेरे आंसूओ  की खुशबू मैं पहचानता हूँ  |
तेरी हर एक बात मुझे याद, तड़पा सता रही ,
जो पता तूने दिया खुद, उस पर ही  तेरा पता नहीं ||

सफ़र तो था साथ किया शुरू, प्यार ही था केवल एक कायदा |

ना जाने कब बिछड़े  तुम, पर फिल मिलने का था एक वायदा |
मेरे आने में थोड़ी देर हुई, क्या उसकी ऐसी सजा मिली |
इंतजार  तो अभी भी करेंगे, हार मानने की अभी रजा नहीं |
अनजान पंक्षियों को सुनने की कोशिश करता, शायद ये कुछ बता रही,
जो पता तूने दिया खुद,  उस पर ही  तेरा पता नहीं ||

~~ अभिषेक कुमार गुप्ता ~~
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