_____________________________
समय धारा
_____________________________
समय की धारा मे बहता जा रहा हु,
कोई डर नहीं मन मे है,
निर्भीक हो के चला जा रहा हु,
किनारों की कोई खबर नहीं,
बस जैसे जैसे समय धारा चलती,
मुझको भी चलते जाना है,
मंजिल कहा मेरी किसको पता,
कल कहा लेजायेगी धारा किसको पता,
मुझे तो आज ही मौज मानना है,
बस जैसे जैसे समय धारा चलती,
मुझको भी चलते जाना है,
कभी छल छल करती बहती धारा,
कभी शांत स्थिर रहती है,
मै भी धारा के संग बदलता हु,
कभी मुस्कुराता तो कभी रोता हु,
बस जैसे जैसे समय धारा चलती,
मुझको भी चलते जाना है,
आज देश कल परदेश लेजाती है,
कभी सुख कभी दुःख दिखाती है,
सुख दुःख देश परदेश घुमते हुए,
मुझे आपनी अनदेखी मजिल पानी है,
बस जैसे जैसे समय धारा चलती,
मुझको भी चलते जाना है,
आपनी मजिल को पाना है
बस जैसे जैसे समय धारा चलती,
मुझको भी चलते जाना है...
~ गौरव मणि खनाल ~
_____________________________
0 Comments