सूरज ने कहा
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सूरज ने कहा उस बदरी से,
ज़रा अपनी रजाई तो हटाओ !
सारी रात तेरे आघोष में सोया हूँ,
अब तो मेरे रंगों को बिखराओ !
खिलने जाने दो मेरी ये धूप,
तड़प रही है जिसे पाने को धरती !
पिघल जाने दो ये ओस की बूँदें ,
जो सारी रात है तुमने बिखेरी !
बाकि हैं खिलनी अभी,
मेरे इंतज़ार में कलियाँ !
सुबह की राह तकती,
सूनी पड़ी हैं गलियां !
ना फैलाओ ये अँधियारा,
होकर यूँ उदास !
मैं फिर वापस आऊंगा,
अब थोड़ा तो मुस्कुराओ !
सूरज ने कहा उस बदरी से,
ज़रा अपनी रजाई तो हटाओ !!
ज़रा अपनी रजाई तो हटाओ !
सारी रात तेरे आघोष में सोया हूँ,
अब तो मेरे रंगों को बिखराओ !
खिलने जाने दो मेरी ये धूप,
तड़प रही है जिसे पाने को धरती !
पिघल जाने दो ये ओस की बूँदें ,
जो सारी रात है तुमने बिखेरी !
बाकि हैं खिलनी अभी,
मेरे इंतज़ार में कलियाँ !
सुबह की राह तकती,
सूनी पड़ी हैं गलियां !
ना फैलाओ ये अँधियारा,
होकर यूँ उदास !
मैं फिर वापस आऊंगा,
अब थोड़ा तो मुस्कुराओ !
सूरज ने कहा उस बदरी से,
ज़रा अपनी रजाई तो हटाओ !!
~~ अंकिता जैन "भंडारी "~~
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