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कुछ लोग उसे मसीहा कहते हैं
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सरापा इश्क ही से भरपूर था वो,
कुछ लोग उसे मसीहा कहते हैं |
अंदाज़ उन के भी अजीब कम नहीं,
कभी निहां कभी नुमाया रहते हैं |
उनके दरमियाँ बस मोहब्बत ही थी,
बाकी कहें, कैसे इक दूजे को सहते हैं |
आखिर डूब गया, वो जो कहता था,
कि आ चल दोनों संग संग बहते हैं |
वक़्त धीमे धीमे रिसता ही जायेगा,
ऐसे बाँध यक-ब-यक नहीं ढहते हैं |
" आशीष पंत "
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