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"मिट्टी की चिट्ठी"
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"मिट्टी की चिट्ठी"
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मिट्टी से आई चिठ्ठी,बस यही मुझ से कहती है,
कि कुछ नजरें आज भी तेरे इंतजार में, रास्ते पर टिकी रहती हैं,
फीके लगते हैं
वो रोशनी,वो रंग,
वो आसमान में,
बेमन ऊङती पतंग,टप टप करती, बारिश की बूंदे,
आज भी तुझे भिगोने आती हैं,
नाम न पता तेरा, वो अंजान यूँही बरस जाती हैं,
बेमन ऊङती पतंग,टप टप करती, बारिश की बूंदे,
आज भी तुझे भिगोने आती हैं,
नाम न पता तेरा, वो अंजान यूँही बरस जाती हैं,
रात में तेरा ख्याल नींद उङा देता है,
अब तो अँखियाँ तेरे दीदार को तरस जाती हैं,
खुशबू वो सौँधी सौंधी पानी से भीगी मिट्टी की,
क्या वहाँ भी मन को भाती है,
यहाँ तो नजरंदाज करते थे ,क्या वहाँ इसकी याद सताती है,
मिट्टी से आई चिठ्ठि मुझे हर पल तेरी याद दिलाती है,
अगर दूरी है,समंदर भर की तो नजदीकी भी है पल भर की
पर एहसास वो छूने का,वो इतमिनान,साथ होने का
वो हवा नही देती है,जो तुझ से टकराकर मुझ तक बहती है,
मिट्टी से आई चिट्ठी......
.
-विवेकानंद जोशी
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अब तो अँखियाँ तेरे दीदार को तरस जाती हैं,
खुशबू वो सौँधी सौंधी पानी से भीगी मिट्टी की,
क्या वहाँ भी मन को भाती है,
यहाँ तो नजरंदाज करते थे ,क्या वहाँ इसकी याद सताती है,
मिट्टी से आई चिठ्ठि मुझे हर पल तेरी याद दिलाती है,
अगर दूरी है,समंदर भर की तो नजदीकी भी है पल भर की
पर एहसास वो छूने का,वो इतमिनान,साथ होने का
वो हवा नही देती है,जो तुझ से टकराकर मुझ तक बहती है,
मिट्टी से आई चिट्ठी......
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-विवेकानंद जोशी
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1 Comments
good
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