विदेश
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क्या गुजरती उन पे है ,तुम छो ड़ जाते हो जब अकेला
टीस सी उठती है मन में ,ज्यों अ केला हो ये मेला
बूढी आँखें सुख- व् -दुःख में , गीली हो -हो सूख गईं
पुत्र प्रेम की वो डोर जपते -ज पते चूर हुई
कोई आता अपने मन के भाव भर वो थ ैलियों में
भेजते हैं दूर देश प्रेम मन का थैलियों में
अश्रु पूर्ण आँखों से चुन - चुन कर तेरी रुचियाँ
माँ भरती मुट्ठी में भेजती तु झको है खुशियाँ
फ़ोन पर सुन तेरी बातें ,चाहती छिपाना भाव
शक ना हो तुझे कोई झेल जाती है वो घाव
यूँ ही लड़ झगड़ के वो काटते है ं अपनी शाम
क्यों हमने सींचे बाग़ क्यों हम ने रोपे आम
बेटा तू छोड़ - छाड़ आ जा अब यह ाँ ही
हमें क्यों बुला है रहा घर अपना यहाँ ही
पर बेटा गया जो है आएगा कहाँ वापिस
वह तो सुख की दुनियाँ,दुःख से ह ो क्या हासिल
अपने बच्चे अपनी बीवी ,माँ की जगह टीवी
सुख -सुविधा धन - माया ,सब की त ो यहीं वीथी
पलक पांवड़े बिछाये ,दिन बीते रात जाएँ
बेटा - बहू गए जो हैं लौट के शायद वो आयें ................
ममता
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