" कुछ देश की भी सुध लें "
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हे विघ्न विनाशक गणपति मुझको कुछ ऐसी दो मति
इतना तो में भी कर सकूं इस देश में सुख को भर सकूं
हाँ है मुझे इतना पता संकल्प मेरा है बड़ा
पर क्या करूँ जो है जमीं , उसमें ही पनपी है कमी
कैसे इसे मैं दूँ ईमान, दूँ धर्म का इतना सा दान
के आदमी हो आदमी, पशुता हटे इंसान की
कैसे हो हम में एकता संचार हो बस प्रेम का
क्यों ना हो हम में चेतना ,मानव में हो संवेदना
क्यूँकर हमारी ये धरा फैलाए जग में वो नशा
जो नशा हो बस प्रेम का आधार में हो बल खड़ा
ले आयें हम वो फिर से पल , हो इस जहाँ में हम ही हम
हम हर तरफ हों उड़ रहे , सोने की चिड़िया फिर बने
इंसानियत की शान हों , ब्रह्माण्ड की हम आन हों
कम कर सकें हम वेदना , हों हम जगत की प्रेरणा
ममता शर्मा
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